निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-

यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।

धर्म के तथाकथित ठेकेदार लोग पहले साधारण लोगों के बीच धर्म की गलत व्याख्या कर उनके मन में धार्मिक उन्माद पैदा करते हैं। ऐसा वे साधारण लोगों की अर्धशिक्षित मनोदशा का लाभ उठाकर करते हैं। वो लोग इनके मन में दूसरे धर्म के प्रति नफरत का बीज बोते हैं। इस प्रकार वो लोग इनके मन को पूरी तरह हिप्नोटाइज कर इनसे मनमाना कार्य कराकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। ये लोग उन ईश्वर बने तथाकथित लोगों के आदेश का पालन करने में जरा भी नहीं हिचकते हैं क्योंकि ये लोग उनके हाथ की कठपुतली बन चुके होते हैं। लेखक वास्तव में आधुनिक युग में लोगों में बढी जागरूकता के आधार पर ही ऐसा संभव प्रतीत होना मानते हैं। वे समाज में बढी इस जागरुकता के आधार पर ही आने वाले समय में समाज में किसी भी व्यक्ति के भलमनसाहत की कसौटी उनके पूजा-पाठ आदि पर निर्धारित नहीं मानते हैं। वे बल्कि इसे उस व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के साथ किये गये व्यवहार पर आधारित होना मानते हैं।


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